'बरसाती नदियाँ' और 'सबको पीछे छोड़ चुका है आदमी' काव्य संग्रह हुए लोकार्पित

'बरसाती नदियाँ' और 'सबको पीछे छोड़ चुका है आदमी'  काव्य संग्रह हुए लोकार्पित

आईसेक्ट पब्लिकेशन, वनमाली सृजन पीठ, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में युवा कवि संजय सिंह राठौर के कविता संग्रह 'बरसाती नदियाँ' और युवा रंगकर्मी विक्रांत भट्ट के कविता संग्रह 'सबको पीछे छोड़ चुका है आदमी' का लोकार्पण 15 जुलाई को टैगोर विश्वविद्यालय के कथा सभागार में समारोह पूर्वक किया गया। उल्लेखनीय है कि लोकार्पित दोनों पुस्तकें साहित्य अकादमी, संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग, मध्यप्रदेश शासन भोपाल द्वारा प्रकाशनार्थ श्रेष्ठ पाण्डुलिपियों में स्वीकृत हुई है। साहित्य अकादमी द्वारा दोनों पुस्तकों के प्रकाशन हेतु पुरस्कार स्वरूप अनुदान भी प्रदान किया गया है। आकर्षक कलेवर के साथ दोनों संग्रहों का प्रकाशन आईसेक्ट पब्लिकेशन द्वारा किया गया है। सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर और माता सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।

लोकार्पण अवसर पर वरिष्ठ कवि– कथाकार, निदेशक विश्व रंग एवं रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे ने  अध्यक्षीय दायित्व के साथ कार्यक्रम के संचालन का दायित्व भी बड़ी संजीदगी के साथ अपने हाथों लेकर एक नई मिसाल कायम की। इस अवसर पर आपने कहा कि यह दोनों कवि हमारे हरेक कार्यक्रमों और समारोहों में अपनी भूमिका का निर्वहन करते आ रहे हैं, आज इनका दिन है, इसलिए संचालन मैं करूँगा। उनके इतना कहते ही कथा सभागार तालियों से गूँज उठा।

श्री संतोष चौबे ने अपने उद्बोधन में कहा कि संजय की कविताओं में मजदूर वर्ग की चिंता, उनके संघर्ष, परिवार, माता-पिता, पास पड़ोस, अपने परिवेश के प्रति प्रेम गहरे से परिलक्षित होता है, वही बाजारवाद के विरुद्ध चिंताएँ भी उनकी कविताओं में  गहराई से आती है। विक्रांत रंगमंच की पृष्ठभूमि से आते हैं, यह उनकी कविताओं में भी झलकता है। उनकी कविताओं में नाटकीयता के बिंब होते हैं। उन्होंने दोनों कवियों को हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि दोनों ही कवि भविष्य के प्रति असीम संभावनाओं से भरे कवि हैं।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश शासन के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि संजय सिंह राठौर की कविताओं में प्रतिकों का बखूबी प्रयोग हुआ है, जिसके माध्यम से वह अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं, उन्होंने उनकी कविता टाँड और बोनसाई का जिक्र करते हुए यह बात कही। उन्होंने उनकी कविता किराएदार को भी रेखांकित किया।  डॉ. विकास दवे ने आगे कहा कि विक्रांत भट्ट की कविताओं में चाँद कई तरह से कई प्रतीक के रूप में आया है। चाँद जीवन में शीतलता और आस्वस्ति का प्रतीक भी बनकर आता है।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कथाकार एवं वनमाली सृजन पीठ, भोपाल के अध्यक्ष श्री मुकेश वर्मा ने कहा कि दोनों कवियों की रचनाओं में दुःख और करुणा केंद्र में है, लेकिन दुःख और करुणा के साथ दोनों का ट्रीटमेंट अलग-अलग है।  दोनों ही कवि अंतर्मुखी है और लगातार अपने आप से संवाद करते हैं, यह संवाद कविताओं के माध्यम से सीधे पाठकों तक संप्रेषित होता है।

वरिष्ठ कला समीक्षक एवं 'रंग संवाद के संपादक श्री विनय उपाध्याय ने विक्रांत भट्ट की कविताओं पर टिप्पणी करते हुए कहा कि विक्रांत की कविताओं में अपनी मिट्टी की खुशबू तो है ही, साथ ही  वह अपनी कविता के अंत में कुछ सूत्र वाक्य जरूर लेकर आते हैं। उनकी कविताओं में एक नाटकीय तत्व होता है।  उन्होंने विक्रांत की कविता पितापन और डायरी के कुछ अंश भी पढ़ें।

युवा कवि–कथाकार श्री मुदित श्रीवास्तव ने  संजय सिंह राठौर की कविताओं को रेखांकित करते हुए  कहा कि संजय सिंह राठौर की कविताओं का मुख्य स्वर प्रतिरोध है, जो उनके अपने जीवन संघर्ष से उपजा है।  उनकी कविता में पास पड़ोस, परिवार, रिश्ते बड़ी संजीदगी के साथ आते हैं। श्री मुदित श्रीवास्तव ने इस अवसर पर संजय सिंह राठौर की कविता सुबह के लिए, एक दिन, अनायास ही नहीं के कुछ अंश भी पढ़ें।

संजय सिंह राठौर ने अपनी कविताओं बोनसाई, अपना शहर, मां और किताब, बरसाती नदियाँ  आदि का पाठ किया।

विक्रांत भट्ट ने अपनी कविताओं  लिक्विड प्रेम, अब प्लूटो के बारे में नहीं पढ़ाया जाता, पहले से कहीं ज्यादा आगे आदि का पाठ किया।

कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य आईसेक्ट पब्लिकेशन की प्रबंधक एवं वनमाली सृजन पीठ की राष्ट्रीय संयोजक सुश्री ज्योति रघुवंशी द्वारा दिया गया।

आईसेक्ट पब्लिकेशन के वरिष्ठ प्रबंधक श्री महीप निगम ने कार्यक्रम का प्रारंभिक संचालन किया और अंत में आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर आईसेक्ट समूह की महत्वपूर्ण पत्रिकाओं 'वनमाली कथा', 'रंग संवाद', 'इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए' के ताजा अंकों का लोकार्पण भी अतिथियों द्वारा किया गया।

इस अवसर पर रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय  के कुलगुरु डॉ आर.पी. दुबे ,कुल सचिव डॉ. संगीता जौहरी, टैगोर अंतरराष्ट्रीय हिंदी केंद्र के निदेशक, डॉ. जवाहर कर्नावट, वरिष्ठ कवि एवं विश्व रंग परिवार के सदस्य श्री बलराम गुमास्ता, युवा कवि श्री मोहन सगोरिया, मानविकी एवं उदार कला संकाय की डीन डॉ. रुचि मिश्रा तिवारी, विभागाध्यक्ष डॉ. हर्षा शर्मा, विभागाध्यक्ष (हिंदी), डॉ. अरुण पांडेय, संस्कृत, प्राच्य भाषा एवं भारतीय ज्ञान परंपरा केंद्र के संयोजक डॉ. संजय दुबे, डॉ. सावित्री सिंह परिहार, डॉ. उषा वैद्य आदि सहित बड़ी संख्या में प्राध्यापकों, विद्यार्थियों, टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगकर्मियों, साहित्यप्रेमियों ने रचनात्मक भागीदारी की।


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