ये रंग-बिरंगी होली का तमाशा नहीं, ये तो हमारे देश की संस्कृति का दर्पण है। 'होरी हो ब्रजराज' के माध्यम से ब्रज की आत्मा भोपाल में उतरेगी, जहाँ लोक कला की सरलता और सुंदरता दिखाई देगी। 18 मार्च की शाम, मुक्ताकाश मंच, वीथि संकुल परिसर, इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में आइए और इस सरल और सच्चे उत्सव का हिस्सा बनिए।